Sunday, October 31, 2010

ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया

Singer: Mohd. Rafi

ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया
ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?

हर इक जिस्म घायल, हर इक रूह प्यासी
निगाहों में उलझन दिलों में उदासी
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?

यहां इक खिलौना है इंसान की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती
यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?

जवानी भटकती है बदकार बनकर
जवां जिस्म सजते हैं बाज़ार बनकर
यहां प्यार होता है व्यापार बनकर
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?

ये दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है
वफ़ा कुछ नहीं दोस्ती कुछ नहीं है
जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?

जला दो इसे फ़ूंक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
तुम्हारी है, तुम ही संभालो ये दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?


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