Sunday, November 14, 2010

इतनी नाज़ुक ना बनो

Singer: Mohd. Rafi

इतनी नाज़ुक ना बनो, हाय, इतनी नाज़ुक ना बनो
हद के अन्दर हो नज़ाकत तो अदा होती है
हद से बढ़ जाये तो आप अपनी सज़ा होती है

जिस्म का बोझ उठाये नहीं उठता तुमसे
ज़िंदगानी का कड़ा बोझ सहोगी कैसे
तुम जो हलकी सी हवाओं में लचक जाती हो
तेज़ झोंकों के थपेड़ों में रहोगी कैसे

ये ना समझो के हर इक राह में कलियां होंगी
राह चलनी है तो कांटों से भी चलना होगा
ये नया दौर है इस दौर में जीने के लिये
हुस्न को हुस्न का अन्दाज़ बदलना होगा

कोइ रुकता नहीं ठहरे हुए राही के लिये
जो भी देखेगा वह कतरा के गुज़र जायेगा
हम अगर वक़्त के हमराह ना चलने पाये
वक़्त हम दोनो को ठुकरा के गुज़र जायेगा



No comments:

Post a Comment